Sunday, May 15, 2011

त्रि पदी

यह हिंदी काव्य की नई विधा है
यह हाइकू नही है यह तीन पंक्तियों की रचना है
इस में रिदम भी है
थोड़े से शब्दों में काव्य का चमत्कार व रस दोनों की अनुभूति होती है
मेरे ऐसी त्रि पदी देश विदेश में प्रकाशित हो चुकी हैं हो सकता है आप को भी पसंद आ जाये ये प्रचलित क्षणिका नही हैं पर निश्चित ही क्षणिका से भी छोटी विधा है जो क्षणिका नही तो और क्या है
कृपया आप चाहें तो विषय के अनुसार इन्हें कोई क्रम अवश्य देने की कृपा करें व जो भी उपयोगी प्रतीत हों कृपया उपयोग कर लें अन्ता अनर्गल समझ कर छोड़ दें
वेद व्यथित

दीवार से मत कहना
वो सब को बता देगी
ये बूढों का कहना
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गम अपने छुपा रखना
अनमोल बहुत हैं ये
ये कीमती हैं गहना
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दिल खोल के मत रखना
वो राज चुरा लेंगे
कुछ पास नही बचना
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जब हाथ ठिठुरते हैं
तब मन के अलावों में
दिल भी तो जलते हैं
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ये आग ही धीमी है
दिल और जलाओ तो
ये आग ही सीली है
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चूल्हे की सिकी रोटी
अब मिलती कहाँ है माँ
तेरे हाथों की रोटी
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सरसों अब फूली है
देखो तो जरा इस को
किन बाहों में झूली है
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रिश्ते न जम जाएँ
दिल को कुछ जनले दो
वे गर्माहट पायें
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नदियों के किनारे हैं
हम मिल तो नही सकते
पर साथी प्यारे हैं
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मीठी सी बातें थी
गन्ने का रस जैसी
वे ऐसी यादें थीं
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ये प्यार की कीमत है
सब कुछ सह कर के भी
मुंह बंद किये रहना
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फूलों का अर्थ नही
वे फूल से होंगे ही
पर फूल का अर्थ यही
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फूलों ने बताया था
नाजुक हैं बहुत ही वे
कुछ झूठ बताया था
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दिल की क्यों सुनते हो
ये बहुत सताता है
इस की क्यों सुनते हो
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कहते दिल पागल है
इसे समझ नही आती
सच में ये पागल है
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दो राहें जाती हैं
मैं किस पर पैर रखूं
वे दोनों बुलातीं हैं
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ज्वाला भडकाती है
आँखों की चिंगारी
दिल खूब जलाती है
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क्यों आग से घबराना
जब जलना ही था तो
क्यों उस से को नही जाना
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ये आग न खो जाये
दिल में ही इसे रखना
ये राख न हो जये
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यह आग है खेल नही
दिल इस से जलता है
इसे सहना खेल नही
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मन मन्दिर तो है ही
क्यों कि तुम इस में हो
ये मन्दिर तो है ही
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आँखों ही आँखों में
जो बात कही उन से
वो बात है चर्चों में
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एक दिया जलता है
सो जाते हैं सब पंछी
दिल उस का जलता है
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आँखों में समाई है
कोई और नही देखे
तस्वीर पराई है
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यादों का सहारा है
यह उम्र की नदिया का
एक अहं किनारा है <>
यह धूप है जड़ों की
इसे ज्यादा नही रुकना
लाली है गालों की
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आँखों में समाई है
क्यों फिर भी नही आती
ये नींद पराई है
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एक सुंदर गहना है
इसे मौत कहा जाता
ये सब ने पहना है
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यह जन्म का नत अहै
इसे मौत कहा जाता
यह लिख कर आता है
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4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

हाइकू में बहुत कुछ कहने की क्षमता होती है, पढ़कर सोचने का मन करता है।

vandana gupta said...

अच्छी लगी त्रि-पदी।

राजेश उत्‍साही said...

मुझे तो त्रिपदी हाइकू से ज्‍यादा बेहतर लगी। बस एक ही अवलोकन है कि एक बार में चार से ज्‍यादा रचनाएं न दें। क्‍योंकि त्रिपदी यानी तीन पंक्तियों में बहुत गहरी बात समाई होती है, उन्‍हें आत्‍मसात करने के लिए समय मिलना चाहिए। अधिक रचनाएं होने से पाठक के पास यह समय नहीं होता है कि वह किसे याद रखे।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

सुन्दर....
पर आप इस बारे में थोडा विस्तार से बताएं....हम जैसों की समझ में एक बार में नहीं आता है ये सब.
क्या ये हाइकू से प्रेरित नहीं है....इधर हिंदी काव्य में नए-नए प्रयोग होने लगे हैं....कभी त्रिपदी के नाम पर कभी त्रिवेणी के नाम पर....अब लगता है हमने भी कुछ करना पाएगा (सिर्फ पढना ही पड़ेगा)
एक बार पुनः सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड