Monday, September 6, 2010

नव गीतिका

ओस की बूंदों में भीगे हैं पत्ते कलियाँ फूल सभी
प्यार से छीटें मार गया हो जैसे कोई अभी अभी
अलसाये से नयन अभी भी ख्वाबों में खोये से हैं
बेशक आँख खुली है फिर भी टूटा कब है ख्वाब अभी
दिन कितने अच्छे होते थे रातें खूब सुहानी थीं
जैसे दूर गगन में गुजरी हंसों की सी पांत अभी
कितनी सारी बातें बरगद की छाया में होती थीं
उन में शायद ही होंगी तुम को कोई याद अभी
खेल खेलते खूब रूठना तुम को जल्दी आता था
फिर कैसे मैं तुम्हे मनाता क्या ये भी है याद अभी
कैसे भूलूँ वे सब बातें बहुत बहुत कोशिश की है
पर मुझ को वे कहाँ भूलतीं सब की सब हैं याद अभी

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