Saturday, August 21, 2010

नव गीतिका

सुखद अनुभूतियों के क्षण बहुत थोड़े से होते हैं
बहुत तपती है जब धरती जलद दो चार होते हैं
बहुत कुछ सोचता है मन बहुत ऊँचा सा उड़ता है
परन्तु पांव में छाले व दिल में घाव होते हैं
घनी छाया जिन्हों की है बहुत जो फूलते फलते
उन्ही वृक्षों की शाखों पर कुठारा घात होते हैं
किन्ही भीं झंझटों से दूर रहना चाहते हैं जो
उन्ही की जान को हर दिन नये जंजाल होते हैं
जिन्होंने शीश दे कर भी कभी उफ़ तक नही की है
वही तो देशभक्ति की सही पहचान होते हैं
कभी जिन की बुलंदी आसमाँसे बात करती थी
उन्ही के खंडहर भी तो बहुत वीरान होते हैं
बिना कुछ चाहके कोई यदि अपना सा मिल जाये
कभी मिलते तो हैं ऐसे वह अपवाद होते हैं
इन्होने कर लिया हांसिल मुकुट पहचान उन की है
उन्ही के इस जमाने में बहुत गुण गन होते हैं
ये माना नेक नियत का ही रस्ता ठीक होता है
परन्तु इसी रस्ते पर बहुत नुकसान होते हैं
जिन्हें पैरों के नीचे रौंद कर उपर से जाते हो
हवा मिल जाये जब उन को वही बलवान होते हैं
जिन्होंकी अपनी कोई भी जुबां होती नही ही है
उन्हों के भी बहुत दिल में दबे अरमान होते हैं
जिन्हों की सिसकियों में जोर से आवाज न निकले
तुम्हे बेशक नही सुनती उसी में राम होते हैं
जिन्हें तुम पत्थरों सा जान कर ठोकर लगाते हो
उसी रस्ते के पत्थर में बसे भगवान होते हैं
कई गम हैं यहाँ ऐसे भी जो मुश्किल से ही मिलते हैं
बहुत से ऐसे ही गम तो व्यथित के पास होते हैं

1 comment:

Unknown said...

dr. sahab aisi sachchai likh dene se es samaj ke kay safed poson ki kali surat samane ajaigi. unhe bahut bura lagega to ve aur bhi kale karnemon ko anjam dene mein lagenge, sachchai kadvi hoti hai.
aabhar.
sushil