बर्फ पिघल जाएगी सारी बस पानी हो जाएगी
उस के बाद बहुत सा पानी धरती पर भर जायेगा
पर सोचो ये ऐसीनोबत किस के कारण आएगी
कोन सुन रहा है धरती की गर्म आह निकली कितनी
सर्पों की जिह्वा की जैसी ज्वालायें निकली कितनी
फिर भी तो पीड़ादायी हम उत्सर्जन कर रहे यहाँ
किस के मुंह से बीएस कहने की बात अभी निकली कितनी
जिन पर एक निवाला ही था उस को ही छिना तुमने
तन ढकने को एक लंगोटी वह भी छिनी है तुमने
देश बचा है जैसे तैसे उस को भी गिरवी रख दो
सारा कुछ तो बेच खा गये छोड़ा ही क्या है तुमने
इसी तरह जनता का पैसा कोड़ा वोडा खायेंगे
कानूनों का लिए सहारा खूब ही उसे पचाएंगे
क्या कर लोगे उन का तो कुछ बल नही बांका होगा
अध् नंगे भूखे प्यासे वे बेचारे मर जायेंगे
कुछ महीने भिच्ली नही जो सडक बनाईहै तुमने
रोड़ी जो ल्प्ख दी कागज में कहाँ लगे है तुमने
इसी तरह पुल और भवन भी तुमने खूब बनाये हैं
खा कर सारा माल देश का मौज उड़ाई है तुमने
देश हुआ आजाद तो फिर आजाद उसे रहने देते
राजनीती के हाथों लोगों को गिरवी तो मत रखते
कहीं तेलगी कहीं ये कोड़ा मुंह की रोटी छीन रहे
राज निति यदि एव होती फिर ये एसा क्यों करते
सेवा सेवा की रट ने हिसेवा को बदनाम किया
खाली घर जिन के होते थे उन को माला माल किया
ये है सेवा ये उस का फल कैसी ये बेशर्मी है
शर्म करो सेवा कहने से देशद्रोह का कम किया
डॉ. वेद व्यथित
फरीदाबाद
3 comments:
हां मामला चिन्तनीय है. सुन्दर रचना.
... prabhaavashaali abhivyakti !!!
vndna ji tatha shyam ji hardik aabhar swikar krne ki kripa kren
dr.ved vyathit
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