Wednesday, November 16, 2011

फिर अंधियारी रात हो गई |

अभी अभी तो दिन निकला था
सूरज अठखेली करता था
पता कहाँ चल पाया मुझ को
इतनी जल्दी साँझ हो गई
दिन बीता सपने सा खाली
फिर अंधियारी रात हो गई ||

दीख रहा था अभी सामने
हाथ बढ़ा कर छूना चाहा
पर माया मृग बन कर खुद को
खुद से दूर बहुत ही पाया
कहाँ कहाँ ढूँढा फिर खुद को
सब कोशिश बेकार हो गई ||

आँखों का विश्वास यदि मैं
कर भी लूं तो नादानी है
बिना बताये कहाँ उलझ लें
वे पीड़ा से अनजानी हैं
उन का क्या वे उलझ २ कर
मुझ को कितनी पीर दे गईं ||

मुस्कानों से दूर रहूँ तो
मरघट सा जीवन लगता है
यदि उलझता मुस्कानों में
नही भेद उन का चलता है
जितना उलझन को सुलझाया
उलझन उतनी और हो गई ||

आखिर तो वे मेरे सपने
साथ कहाँ तक दे पाएंगे
आखिर इन का लिए सहारा
कितने से दिन कट पाएंगे
फिर भी जीवन की अभिलाषा
सांस सांस की आस हो गई ||

Sunday, November 13, 2011

हम न लीक बनाई क्यों है

हम न लीक बनाई क्यों है

मौन साधना भंग हुई तो
इस में शब्द कहाँ दोषी हैं
नभ से तारा टूट गिरा तो
इस में वह कहाँ दोषी है

दोष दूसरों को देने की
हम ने लीक बनाई क्यों है ||

आखिर कितनी देर रहे दिन
सूरज को भी ढल जाना है
रात चांदनी भी ढल जाती
और अमावस को आना है

फिर अंधियारे से नफरत की
जाने रीत बनी क्यों है ||

जो भी रंग आकर्षित करते
सारे फीके पड़ जाता हैं
कितने आकर्षित यौवन हो
सारे ढीले पड़ जाते हैं
फिर क्यों बेरंगी सांसों से
दूरी खूब बनाई क्यों है ||

Monday, November 7, 2011

देवताओं का जागना

बन्धुवर निरंतर आप का स्नेह मिल रहा है इसे बनाये रहिये यह व्यंग देवताओं के सोने और जागने के मिथक से जुड़ा है पर आस्तिकता को श्रद्धा पूर्वक नमन करते हए लिखा है
आप का स्नेह इसे भी मिलेगा |


देवताओं का जागना
अच्छे भले देवता लोग सो रहे थे |चारों ओर शांति थी न कहीं शोर न शराबा ,न ढोल न नगाड़ा ,न बाजा न ढोलक ,न हाय न तोबा न वाहनों में भीड़ न सडकों पर भीड़ लोग अपने २ कामों में अच्छे भले लगे हुए थे |जिन्दगी आराम से अच्छी भली चल रही थी |परन्तु जैसे २ देवताओं की नींद टूटने सी लगी लोगों में काना फूसी होने लगी |आखिर एक दिन देव पूरी तरह से जाग गये यानि देवोत्थान हो गया |
देवता क्या जगे ,लगा जैसे अशांति ही जाग गई |लोगों के बहुत सारे काम इसी इंतजार में रुके हुए थे कि कब देवता जगे और कब वे अपने काम शुरू करें जैसे मानो वे कुछ कर ही नही रहे हैं अब न तो वे खा रहे हैं न पी ही रहे हैं न सो रहे हैं न जाग रहे हैं |पर इन में से तो उन्होंने देवताओं के जागने तक एक भी काम नही रोका हुआ था सब काम दिन प्रतिदिन कर रहे थे |कई बार खाते थे कई बार जंगल या दिशा मैदान जाते थे परन्तु ऐसा कौन सा काम था जो वे नही कर रहे थे या जिस पर देवताओं ने पाबंदी यानि प्रतिबन्ध लगाया हुआ था मुझे तो समझ नही आया क्यों कि जब उन के सोते रहने पर खा पी सकते थे जन्म मरण सब हो सकते थे तो फिर देवताओं के जागने का भला किस बात का इंतजार कर रहे थे जो देवताओं के जगे बिना नही हो सकता था |
परन्तु यहाँ के लोग ठहरे डरपोक कि यदि कुछ आवश्यक या बड़े काम देवताओं के सोते हुए कर लिए तो देवताओं की नींद खुलने पर वे नाराज हो जायेंगे और फिर उन की नाराजगी से सूरज नही निकलेगा या धूप नही आएगी जिस के डरके मारे लोग काम बंद कर देंगे परन्तु देवताओं के सोये हुए तो धूप भी खूब अच्छी आती थी वरिश भी होती थी रिम झिम फुहार भी पड़तीं थीं |परन्तु देवताओं के जागने पर तो धूप भी कम हो जाती है सर्दी भी पड़ने लगती है कोहरा छाने लगता है रास्ते बंद होने लगते हैं परन्तु फिर भी देवों के जागने का इंतजार हम सब बड़ी बेसब्री से करते रहते हैं |यह बात अलग है कि हमारे इस डर का फायदा बाहर के लोगों ने खूब उठाया और अब भी उठा रहे हैं |
आखिर जब देवता जाग ही गये तो जैसे भूखा पशु चारे को देखते ही एक दम भागता है ऐसे ही लोग भी उन कामों के लिए भागे जो उन्होंने रोके हुए थे | इन में सब से बड़ा काम था लडके लडकियों की शादी - विवाह का जो जैसे तैसे रोके हुए थे जो शरीफ थे रुके भी पर सब कहाँ रुक सकते थे कुछ इधर उधर हो भी गये जो रह गये तो देवताओं के जागते ही लोगों ने सब से पहला शादी ब्याह का ही शुरू किया कभी जो रुके हुए थे वे इधर उधर भाग भूग न जाये |इस लिए लोगों ने तुरंत शादियाँ शुरू कर दी |
अब क्या था जिधर देखो शोर ही शोर " हाय रब्बा ...हाय रब्बा "गाने कि इतनी हाय तोबा की पूछो मत |जिस का परिणाम यह हुआ कि इन दिनों न तो कोई वेंकट हाल यानि बरात घर या धर्म शाला खाली मिलती है न घोड़ी वाले न बाजे वाले न ही हलवाई और तो और बरातियों का भी टोटा पड़ जाता है जो भी मिलता है औने पाने दाम मांगता है पर इस का फायदा क्या परन्तु फिर भी सिर मुड़वाना पड़ता है |
लोग शादी में प्रीती भोज भी रखते हैंपरन्तु एक ही दिन भला आदमी कितने प्रीती भोज खा सकता है |यदि ये प्रीती भोज अलग २ दिन हों तो भोज खाने का कितना मजा आता माल पर खूब हाथ साफ़ किया जाता परन्तु लोग तो सोचते हैं कि देवों के जागते ही ज्यादा से ज्यादा शादियाँ कर लो जैसे बाद में नम्बर ही नही आएगा या लोग कोई दौड़ जीत लेंगे और तुम पीछे रह जाओगे इस लिए पहले ही दिन लोग होड़ लगा २ कर शादियाँ ब्याह निपटने की फ़िराक में रहते हैं कि कहीं देवता कल ही फिर न सो जाएँ फिर बताओ खाने का मजा कैसे आये परन्तु पैसे तो कई २ जगह जमा करने ही पड़ते हैं परन्तु खाना एक भी जगह ठीक से नही खाया जाता है परन्तु हो क्या सकता है क्यों कि देवता तो अभी २ जागे हैंबस थोड़े दिनों के लिए और लोग हैं कि ऐसे इंतजार करते हैं जैसे देहली के स्टेशन पर बिहार की ओर जाने वाली गाड़ी का भीड़ इंतजार करती है और आते ही जिस पर बुरी तरह टूट पडती है कि कहीं यह छूट न जाये |
अब लोगों को कौन समझाये कि देवता न तो सोते हैं न जागते हैं | वे तो सदा ईश्वर के आधीन काम करते हैं जैसे सूरज यदि सो जाये तो दिन कैसे निकले और रात कैसे हो इसी तरह यदि इंद्र देवता सो जाएँ तो वारिश कैसे हो आदि २ पर ऐसा तो होता नही कि कुछ देवता सो जाएँ और कुछ जागते रहें क्यों कि ऐसा प्रमाण किसी पुराण आदि में नही मिलता है यदि ऐसा हो तो जागने और सोने बाले देवताओं की बारी भी बदल २ आये कि एक बार तुम जागो और दूसरी बार हम जागेंगे परन्तु ऐसा होता नही है |
वैसे लगता है देवता न तो सोते हैं और न ही जागते हैं अपितु लोग ही उन्हें जबरदस्ती सुला देते हैं और फिर अपनी सुविधानुसार जगा लेते हैं इस बीच कई बड़े २ काम उन के सोते २ ही चुप चाप उन्हें बिना बतये या जगाये ही कर भी लेते हैं |अब पता नही देवताओं को इस का पता चलता भी है या नही या मनुष्य चालाकी से पता ही न चलने देते हों |यह भी हो सकता है कि देवता ही सोते हों देवियाँ न सोती हों इसी लिए तो देवताओं के सोने के बाद ही चुपके से मनुष्य देवियों का पूजन कर लेते हैं क्योंकि यदि देवता जागते रहें रहें तो तो भला वे देवियों को क्यों पूजने दें वे भी मनुष्यों से कम थोड़ी हैं जैसे मनुष्य अपनी पत्नी को आगे बढने से प्रसन्न नही होते देवता भी वैसा ही जरूर करते होंगे क्यों कि वे भी तो पुल्लिंग हैं इसी लिए तो लोग देवताओं के सोते हुए ही देवियों को प्रसन्न करने के लिए बहुत से उपाय करते हैं जैसे देवियों के लिए वे कन्या पूजन कर लेते हैं देवियों को खूब हलवा पूरी बना २ कर प्रसाद चढाते हैं रात २ भर देवियों के लिए जागरण करते हैं करवा चौथ , अहोई माता का पूजन और सब से ज्यादा लोगो के लिए महत्व पूर्ण लक्ष्मी देवी का पूजन भी देवताओं के सोते २ ही कर लिया जाता है लक्ष्मी देवी जी के पूजन के लिए तो खूब ताम झाम किया जाता है घर द्वार सब रोशन किया जाता है बिजली की झालरे या लड़ियों से घर बाहर सजाया जात है घी तेल के दिए जलाये जाते हैं खूब रिश्ते नाते दारों को व अडोसी पडौसियों को मिठाइयाँ बांटी और खिलाई जाती हैं |नये २ बढिया २गिफ़्त यानि उपहारों का खोब लेना देना होता है बड़े अफसरों नेताओं के घर इसी बहाने खूब लक्ष्मी बरसती है रिश्वत का खुला खेल इसी बहाने खूब चलता है | इस से आप स्वयम अनुमान लगा सकते हैं कि देवियों का देवताओं से कितना अधिक महत्व है |
अब जब देवियों का खूब पूजन आदि हो चुकता है तब देवताओं को जगाया जाता है क्यों कि अब देवताओं के घर में तो पूरी सेंध लग ही चुकी होती है |फिर देवताओं की खूब प्रशंसा की जाती है कि हे देवताओं जागो हम तो आप के जागने का कितने समय से इंतजार कर रहे हैं कि आप जगे तो हम अपने महत्व पूर्ण काम कर सकें आप के जागने के इंतजार में वे सब काम हम ने आप के लिए ही तो रोक रखे हैं |फिर उन्हें खुश या प्रसन्न करने के लिए तरह २ उपाय किये जाते हैं |शादी ब्याह आदि शुरू कर देते हैं खूब ढोल नगाड़े गाजे बजे बजाने लगते हैं ताकि देवताओं को खूब बहकाया जा सके साथ ही बरात आदि निकल कर भी खूब शोर किया जाता है इस से देवता भी शायद खूब खुश होते होंगे कि ये मनुष्य कितने अच्छे हैं जो हमारे सोये रहने पर कोई काम नही करते हैं अपितु हमारे जागने का इंतजार करते रहते हैं और जब हम जाग जाते हैं तभी अपने काम शुरू करते हैं परन्तु उन्हें क्या पता कि लक्ष्मी देवी जी के पूजन जैसे काम तो उन्होंने देवताओं के सोते २ ही निपटा लिए हैं ताकि उन्हें पता भी न चले और काम भी बन जाये क्यों कि देवताओं पास वैसे है भी क्या असली माल तो देवियों के पास ही होता है जैसे धन - दौलत ,विद्या -बुद्धि ,शक्ति आदि सभी कुछ तो वास्तव में देवियों के पास ही होती है इस लिए लोग चालाकी से देवताओं को सोये हुए ही चुपचाप अपना काम निकल लेते हैं कभी देवता अपनी देवियों को ये सब न देने दें इस लिए मनुष्य चालाकी से देवियों की पूजा पहले ही कर के लक्ष्मी जी से माल अपने कब्जे में कर लेते हैं |फिर उस में से ही थोडा बहुत खर्च कर के देवताओं को सस्ती २ सी चीजों से ही खुश कर देते हैं उन के पूजन के लिए मिष्ठान के बजाय सस्ते २ से मूली सिंघाड़े जंगली बेर खेत से तोड़ कर लए गये गन्ने आदि से पूजन कर के उन्हें खुश कर देते हैं जब की देवियों के लिए खूब माल बनाते हैं घर सजाते हैं |
अब पता नही यह बात देवताओं को कब पता चलेगी या लोग उन्हें पता भी चलने देंगे या नही या वे देवताओं को यूं ही सुला जगा कर a बहका कर चुप चाप लक्ष्मी आदि का पूजन करते रहेंगे चलो देवी देवता तो अपने आप भी सोते जागते रह सकते हैं पर मनुष्य पता नही कब जागेंगे वैसे देश की परिस्थियों को देखते हुए अब तो उन्हें जाग ही जाना चाहिए |
डॉ वेद व्यथित
अनुकम्पा -१५७७ सेक्टर ३
फरीदाबाद १२१००४
०९८६८८४२६८८

Wednesday, November 2, 2011

हम नई लीक बनाई क्यों है

हम ने लीक बनी क्यों है

मौन साधना भंग हुई तो
इस में शब्द कहाँ दोषी हैं
नभ से तारा टूट गिरा तो
इस में वह कहाँ दोषी है

दोष दूसरों को देने की
हम ने लीक बनाई क्यों है ||

आखिर कितनी देर रहे दिन
सूरज को भी ढल जाना है
रात चांदनी भी ढल जाती
और अमावस को आना है

फिर अंधियारे से नफरत की
जाने रीत बनी क्यों है ||

जो भी रंग आकर्षित करते
सारे फीके पड़ जाता हैं
कितने आकर्षित यौवन हो
सारे ढीले पड़ जाते हैं
फिर क्यों बेरंगी सांसों से
दूरी खूब बनाई क्यों है ||