Saturday, April 23, 2011

क्रौंच वध

क्रौंच वध

पहली बार तो नही हुआ था
पृथ्वी पर क्रौंच वध
परन्तु उस की पीड़ा को
शायद पहली ही बार
अनुभव किया गया था
जिस से बह चली थी
करुणा की अजस्र धारा
जो प्लावित होती ही रही
क्यों कि उस ने नही क्या था दावा
दूसरों को द्रवित करने का
अपितु कवि स्वयम द्रवित हो गया था
उस पीड़ा से
जिस से प्रादुर्भूत हुए
महा काव्य मानवता के ||

7 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

हर द्रवित कवि के पीछे ऐसी ही घटनायें घट रही हैं।

वाणी गीत said...

पीड़ा ही सही मायने में कवि को जन्म देती है ...

udaya veer singh said...

priy shreshthh,
pahle shlok ka prithvi par avataran ka karan bana kraunch -----[ sa mam pat ---] sunder darshan ka varnan sanskaron se ..... achhi abhivyakti .sadhuvad ji

रचना दीक्षित said...

bemisal prastuti

Kailash Sharma said...

बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..

निवेदिता श्रीवास्तव said...

nice expressions......

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति