Friday, January 29, 2010

फ़ोन विहीन नेता जी

नेता जी चिंतन कर रहे थे देश कीसमस्याओं में उलझ रहे थे उन में गहराईसे डूब रहे थे इसी गहराई में चिन्तन करते करते देश का बहुत उद्धार कर दिया दुनिया भर का निर्माण कर दिया ऊँची २ इमारतें बना दी बड़े २ बांध बना दिए नदियों पर पुल बना दिए ऐसा ही पता नही क्या २ हवा में बना दिया देश का तो इन चिन्तन के क्षणों में नकशाही बदल दिया
इसी तन्द्रा यानि चिन्तन में एक चमचा प्रकट हो गया नेता जी के कार्यों पर गर्व से उस का सिरनेता जी चरणों पर झुकाया फिर उस ने अपना चमचा धर्म निभाया उस ने नेता जी से इस निर्माण के उदघाटन की प्रार्थना की और कहा आप ने देश पर कितना उपकार किया है देश की जनता का कल्याण किया है अब आप देर मत करें आप के हाथ में जो नारियल है उसे तोड़े जोर से सडक पर पटक कर फोड़ें और इस सरे हवाई निर्माण का उद्घाटन करें बस फिर क्या था नेता जी ने अपना धर्म निभाया उद्घाटन करने को हाथ में पकड़ा नारियल जोर से दे मारा नारियल टुकड़े २ हो गया परन्तु तेज आवाज से नेता जी का चिन्तन भंग हो गया क्यों की न तो वहाँ कोई उद्घाटन था और न ही नारियल था उन के हाथ में तो उन का सेल फोन था जो चिंतन में नारियल हो गया था और जोर से पटकने पर टुकड़े २ हो गया था दूर २ तक बिखर गया था नेता जी का चिन्तन भंग हो गया था
फोन क्या टूटा नेता जी फोन हीन हो गये नेता जी फोन हीन क्या हुए गजब हो गया जैसे युद्ध में योद्धा शस्त्र हीन हो जाये ,फ़ौजी सीमा पर बिना बंदूक के तैनात कर दिया जायेसिपाही से उस का डंडा छीन लिया जाये मजदूर को बिना औजार काम पर लगा दिया जाये पत्रकार को खबर न लिखने दी जाये लेखक से कलम छीन ली जाये ड्राइवर को गाडी न चलाने दी जाये रेल को सिंग्नल न दिया जाये हीरो को विलं की पिटाई न करने दी जाये विलं को गुंडा गर्दी न करने दी जाये प्रेमिका को प्रेमी संग बात न करने दी जाये प्रेमी को प्रेमिका के चक्कर में बिना पीते छोड़ दिया जाये पत्नी को पति आँख न दिखने दी जाये औरतों को चुप रहने के लिए कहा जाये बच्चों को शरारतों से रोका जाये अध्यापकों को टूशन न पढ़ने दी जाये स्टेशन पर चाय वालों को चाय २ का शोर न मचाने दिया जाये या और जो २ भी ऐसा कुछ भी आप के दिमाग में आये वह सब फिर आप अंदाजा लगायें की तब क्या हो सकता है ठीक वही हालत बिना फोन के नेता जी की हो गई जैसे जल बिन मछली की दशा होती है चकोर की चाँद के बिना होती है चातककी बिना स्वाती जल के होती है सूर्य की पूर्ण ग्रहण के समय होती हैचन्द्रमा जैसे बिना चांदनी के होता है नदियाँ बिनाजल के जैसे होती हैं समुद्र बिना जल के जैसे होता बस ऐसी ही हालत नेता जी कीबिना फोन के हो गई भला आज के समय में फोन हीन नेता भी कोई नेता हो सकता है कदापि नही तो
परन्तु अब क्या हो बिना फोन नेता ,नेता नही होता क्यों की फोन हीन नेता तो लोक तन्त्र के लिए बहुत बड़ी हानि हैनेता जी फोन ही तो इस लोकतंत्र की चाबी है जैसे कार बिना ड्राइवर के नही चलती बल्व या तुब जैसे बिना लाइट के नही जलती जुआ खेले बिना जैसे कोई जुआरी नही होता शराब पिए बिना जैसे कोई शराबी नही होता ऐसे ही भला बिना फोन के नेता भी नेता नही होता और बिना नेता के भला लोकतंत्र भी कोई लोकतंत्र रह सकता है कदापि नही
इसी लिए कुछ देर के लिए लोक तन्त्र पर खतरा मडराने लगा वह अपनी सार्थकता यानि लोकतंत्रिकता खोने लगा यानि लोकतंत्र फेल होने लगा वह लोकतंत्र न रह कर कुछ और होने लगा क्यों की लोक तन्त्र के रहने पर शहर में सोने की चैन लुटेरों को चोरों को डैकेतों को पुलिस ने पकड़ लिया और ठाणे में बंद कर दिया उन के हित चिंतक लोग लोकतंत्र में अपना हक मागने नेता जी के पास पहुंचे और बोले अपना वायदा निभाओ हमारे काम आओ तुरंत पुलिस को फोन करो हमारे आदमियों को छुड वाओ पुलिस वालों को धमकाओ थानेदार का तबादला करवाओ उसे लाइन हाजिर करवाओ परन्तु आज नेता जी का हथियार उन पर नही था वह नारियल सा उदघाटित हो गया था अब फोन हें नेता जी क्या करें पुलिस को फोन कैसे करें कैसे उन्हें धमकाएं और अपने समथको को कैसे छुडाएं इसी बीच एक बड़े दान दाता के यहाँ इनकम टेक्स की रेड पद गई अरबों दो नम्बर का रुपया पकड़ा गया इस्पेक्टर अरबों की जगह लाखों दिखाना चाहता था परन्तु यह तो उन की बेइज्जती थी उन्होंने कहा कम से कम करोड़ों तो दिखाओ क्यों की बाद में तो मिल ही जाना है इस बात पर दोनों में तकरार हो गई ददन दाता ने नेता जी को फोन मिलाया परन्तु नेता जी का फोन तो उद्घटित हो चुका था मिलता कहाँ से आज तो नेता जी फोन हीन थे इस लिए उन्होंने अपना आदमी दौड़ाया परन्तु नेता जी बिना फोन के असमर्थ हो गये यानि बिना के लोकतंत्र के प्रहरी निरस्त हो गये
शहर में और भी कई जगह हलचल हुई लुचे लफंगे काम चोर कर्मचारी बेईमान भ्रष्ट अधिकारी सभी की आफत आ गई नेता जी फोन हीन क्या हुए लोकतंत्र पर बड़ा कुठारा घात हो गया आखिर लोकतंत्र के प्रहरी का एक ही तो काम होता है अपने गुलाम अफसरों को फुनवनाउनको डरना धमकाना तबादले करवाने का कह कर डरना इमानदार पुलिस वालों को लाइन हाजिर करवाना अपने मन माफिक काम करने वाले अफसरों को मन पसंद जगह तैनात करवाना आदि आदिलोकतंत्र के सभी काम रुक गए क्यों की ये सरे काम ही तो नेता जी के फोन से होते हैं विभाग के अधिकारी तो मात्र क्ग्जी कार्यवाही कर के हस्ताक्षर भर करते हैं लोक के तन्त्र का असली काम तो नेता जी करतें हैं इस लिए लोक तन्त्र की रक्षा के लिए कृत संकल्प नेता जी के चमचों ने तुरंत फोन का इंतजाम किया तब जा कर कहीं फिर से लोकतंत्र चालू हुआ
इसी लिए आगे से ध्यान रखा गया की सरकार की ओर से लोकतंत्र की रक्षा के लिए नेताओं को फोन के साथ २ कम्प्यूटर लेपटोप आदि सुविधाएँ भी दी गईं बच्चों केवन्य परिवार वालों के लिए नेता जी के साथ २ उन्हें भी सरकारी गाड़ियाँ भी दे दी गईं ताकि लोकतंत्र चलता रहे लोकतंत्र को ठीक से चलाने के लिए नेताओं के इर्द गिर्द सुविधाओं व सहूलियतों का जल बिछता और बढ़ता रहे लोकतंत्र सुरक्षित रहे
जय लोकतंत्र जय नेता जी जय फोन बाबा की
डॉ. वेद व्यथित
email id: dr.vedvyathit@gmail.com
bog: http://sahityasrajakved.blogspot.com
१५७७ सेक्टर ३ फरीदाबाद -१२१००४

Wednesday, January 20, 2010

मुक्तक

मुक्तक

जितनी सर्द हवाएं होंगी उतनी आग जलेगी
मन के हर कोने कोई चिंगारी सुलगेगी
यदि शांत हो जाएगी यह आग लगी जो दिल में
फिर तो सर्द हवाएं दिल को अपना सा कर देंगी

सर्द हवाओं को भी मैंने मन से कब कोसा है
यही समय तो मन -अलाव को सुलगना होता है
यदि यह सुलगेगा न तो आग जलेगी कैसे
बिना जलाये आग कभी दिल भी क्या दिल होता है

सर्द हवाएं अंदर तक नजरों सी जा चुभती हैं
मन के अंगारों को पल में बुझा रख करतीं हैं
फिर भी दबे हुए अंगारे धधक २ जाते हैं
मन कि छोटी सी चिंगारी बी ज्वाला बनती है

दिल को इतना जला दिया कि आहें गर्म हो गईं
दिल को कितना और जलाता अस्थि गर्म हो गई
फिर भी सर्द हवाएं मन में चुभती ही जाती हैं
सर्द हवाओं से तो तन कि सांसें गर्म हो गईं

इतनी सर्दी पड़ी कीदिल की धडकन सर्द हो गई
इतने क्द्क्द दन्त क्द्क्दाये कुल्फी गर्म हो गई
गर्म गर्म चाय की चुस्की कहाँ नसीब हुईं हैं
चाय ज्यों ही कूप में डाली चाय बर्फ हो गई
dr.vdevyathit@gmail.com

अविनाश वाचस्पति: हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग और कोहरे में जाम देखन मैं चल्‍या ... (अविनाश वाचस्‍पति)

अविनाश वाचस्पति: हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग और कोहरे में जाम देखन kohra nhi koh ram hai
is me to ho gya
jina hram hai
dr.ved vyathitमैं चल्‍या ... (अविनाश वाचस्‍पति)

Saturday, January 9, 2010

मुक्तक

सभी ओर चर्चे हैं धरती गर्म बहुत हो जाएगी
बर्फ पिघल जाएगी सारी बस पानी हो जाएगी
उस के बाद बहुत सा पानी धरती पर भर जायेगा
पर सोचो ये ऐसीनोबत किस के कारण आएगी

कोन सुन रहा है धरती की गर्म आह निकली कितनी
सर्पों की जिह्वा की जैसी ज्वालायें निकली कितनी
फिर भी तो पीड़ा दायी हम उत्सर्जन कर रहे यहाँ
किस के मुंह से बस कहने की बात अभी निकली कितनी

जिन पर एक निवाला ही था उस को ही छिना तुमने
तन ढकने को एक लंगोटी वह भी छिनी है तुमने
देश बचा है जैसे तैसे उस को भी गिरवी रख दो
सारा कुछ तो बेच खा गये छोड़ा ही क्या है तुमने

इसी तरह जनता का पैसा कोड़ा वोडा खायेंगे
कानूनों का लिए सहारा खूब ही उसे पचाएंगे
क्या कर लोगे उन का तो कुछ बल नही बांका होगा
अध् नंगे भूखे प्यासे वे बेचारे मर जायेंगे

कुछ महीने भी चली नही जो सडक बनाई है तुमने
रोड़ी जो लिख दी कागज में कहाँ लगाईं है तुमने
इसी तरह पुल और भवन भी तुमने खूब बनाये हैं
खा कर सारा माल देश का मौज उड़ाई है तुमने

देश हुआ आजाद तो फिर आजाद उसे रहने देते
राजनीति के हाथों लोगों को गिरवी तो मत रखते
कहीं तेलगी कहीं ये कोड़ा मुंह की रोटी छीन रहे
राजनीति यदि सेवा होती फिर ये एसा क्यों करते

सेवा सेवा की रट ने हिसेवा को बदनाम किया
खाली घर जिन के होते थे उन को माला माल किया
ये है सेवा ये उस का फल कैसी ये बेशर्मी है
शर्म करो सेवा कहने से देशद्रोह का कम किया

शीत ऋतू की त्रिप्दि

अब धूप नही आती
सूरज को उलहना है
उस को वः सताती है

क्या वो अनजानी है
ये हो ही नही सकता
सर्दी तो रानी है

जब हाथ ठिठुरते हैं
टीबी मन के अलावों में
दिल भी तो जलते हैं

ये आग तो धीमी है
दिल और जलाओ तो
ये धूप ही सीलीहै

वो महल अटारी से
क्यों निचे नही आती
सूरज की थाली से

कुछ भी तो नही दिखिता
मन छुप २ जाता है
है कोहरा घना इतना

कपडों के खान जाती
ये ठिठुरन इतनी है
वहआग लगा जाती

सरसों अब फूली है
देखो तो जरा इस को
किन बाँहों में झूली है

ये बर्फ जमीन ऐसी
वो मन को जमाएगी
अपना सा बनाएगी

जब धुंध भुत छाए
मन के हर कोने में
टीबी एक किरणआये

मक्के की दो रोटी
और साथ में हो मठ्ठा
और थोडी डली गुड की

क्यों धोप नही बनते
सर्दी की दुपहरी में
सूरज से नही लगते

रिश्ते न जम जाएँ
दिल को कुछ जलने दो
वे गर्माहट पायें

रोके नही रूकती हैं
ये सर्द हवाएं हैं
ये आग सी लगती हैं

मीठी सी बातें थीं
गन्ने का रस जैसी
वे ऐसी बातें थीं

लम्बी सी रातें हैं
ये कहाँ खत्म होतीं
ये बातें ऐसी हैं

साहित्य का इतिहास

हिंदी साहित्य को
शुक्लाचाचा ने
चार हिस्सों में बाँट दिया
बहुत मोटा पोथा बांध दिया
पहले पन्ने से शुरू करें तो
वर्षों लग जाएँ
आखरी पन्ने पर
पता नही कब पहुंच पायें
इस लिए साहित्य का इतिहास
बीच में से खोल लिया
बीचमें से मध्य युग यानि रीति काल
खुल गया
वह वह क्या बात थी
इस में तो नायिकाओं के
नख शिख वर्णन की भरमार थी
नायिका की नाक तोते जैसी थी
आँखे तो कईपशु पक्षियों से मिलती थी
उन कई आंके हिरनी,खंजन पक्षी
ओर मछलियों जैसी थी
कुछ अंग नारंगी ओर नीबू जैसे थे
तो कुछ अंग केले के खंबे जैसे थे
चल हथनी जैसी थी
दांत तो चलो गनीमत रही फूल जैसे थे
नही तो कहीं जंगल औरकहीं जंगल के जावर
नायिका यानि स्त्री क्या थी
पूरा चिड़िया घर थी
यह साहित्य के इतिहास का
मध्य युग था
परन्तु उत्तर आधुनिक युग से तो
फिर भी अच्छा था
इस में तो नारी पर अत्याचारों कई
लम्बी सूची है
नारी ही नारी कई दुश्मन पूरी है
वह वस्त्र हीना है ,नशेडी है विज्ञापन कई वस्तु है
वह तो चलो साहित्य का मध्य युग था
पर यहाँ तो आधुनिकता पूरी है

Sunday, January 3, 2010

मुक्तक

जो जनता को नाच नचाते उन को गुंडे नचा रहे
ताल एक हो जाये सब की तालीवे सब बजा रहे
सब की मिली भगत होती है नेता अफसर गुंडों की
नये साल में नाच नाच कर ऐसा ही वे बता रहे

नाच नचाना और नाचना ये शासन का सूत्र यहाँ
मंहगाई बस बढती जायेबस ये शासन का सूत्र यहाँ
चीनी अभी और भी मंहगी होगी नेता कहते हैं
नेता गीरी और मंहगाई का है अच्छा सूत्र यहाँ

आतंकी तो भगने ही थे और जेल में क्या करते
क्या बिरयानी खाते खाते वे बेचारे न थकते
अब तक ही क्या किया आप ने आगे भी तुम क्या करते
छूटना तो था ही था उन और प्रतीक्षा क्या करते

क्या साधारण कानूनों से आतंकी रुक सकते हैं
देश द्रोह जैसे मद्दे को को क्या हम खास समझते हैं
इसी लिए ऐसी घटनाएँ खूब सहज घट जाती हैं
क्यों की जल्दी फाँसीअफजल कोभी न दे सकते हैं