Tuesday, December 29, 2009

इसवी नव वर्ष की शुभ कामनाएं

इसवी नव वर्ष की शुभ कामनाएं

Thursday, December 17, 2009

bhrashtachar per Muktak

सभी ओर चर्चे हैं धरती गर्म बहुत हो जाएगी
बर्फ पिघल जाएगी सारी बस पानी हो जाएगी
उस के बाद बहुत सा पानी धरती पर भर जायेगा
पर सोचो ये ऐसीनोबत किस के कारण आएगी

कोन सुन रहा है धरती की गर्म आह निकली कितनी
सर्पों की जिह्वा की जैसी ज्वालायें निकली कितनी
फिर भी तो पीड़ादायी हम उत्सर्जन कर रहे यहाँ
किस के मुंह से बीएस कहने की बात अभी निकली कितनी

जिन पर एक निवाला ही था उस को ही छिना तुमने
तन ढकने को एक लंगोटी वह भी छिनी है तुमने
देश बचा है जैसे तैसे उस को भी गिरवी रख दो
सारा कुछ तो बेच खा गये छोड़ा ही क्या है तुमने

इसी तरह जनता का पैसा कोड़ा वोडा खायेंगे
कानूनों का लिए सहारा खूब ही उसे पचाएंगे
क्या कर लोगे उन का तो कुछ बल नही बांका होगा
अध् नंगे भूखे प्यासे वे बेचारे मर जायेंगे

कुछ महीने भिच्ली नही जो सडक बनाईहै तुमने
रोड़ी जो ल्प्ख दी कागज में कहाँ लगे है तुमने
इसी तरह पुल और भवन भी तुमने खूब बनाये हैं
खा कर सारा माल देश का मौज उड़ाई है तुमने

देश हुआ आजाद तो फिर आजाद उसे रहने देते
राजनीती के हाथों लोगों को गिरवी तो मत रखते
कहीं तेलगी कहीं ये कोड़ा मुंह की रोटी छीन रहे
राज निति यदि एव होती फिर ये एसा क्यों करते

सेवा सेवा की रट ने हिसेवा को बदनाम किया
खाली घर जिन के होते थे उन को माला माल किया
ये है सेवा ये उस का फल कैसी ये बेशर्मी है
शर्म करो सेवा कहने से देशद्रोह का कम किया

डॉ. वेद व्यथित
फरीदाबाद

sahitaya ka itihaas

हिंदी साहित्य को
शुक्लाचाचा ने
चार हिस्सों में बाँट दिया
बहुत मोटा पोथा बांध दिया
पहले पन्ने से शुरू करें तो
वर्षों लग जाएँ
आखरी पन्ने पर
पता नही कब पहुंच पायें
इस लिए साहित्य का इतिहास
बिच में से खोल लिया
बीचमें से मध्य युग यानि रीती काल
खुल गया
वह वह क्या बात थी
इस में तो नायिकाओं के
नख शिख वर्णन की भरमार थी
नायिका की नक् तोते जैसी थी
आँखे तो कईपशु पक्षियों से मिलती थी
उन कई आंके हिरनी,खंजन पक्षी
ओर मछलियों जैसी थी
कुछ अंग नारंगी ओर नीबू जैसे थे
तो कुछ अंग केके के खंबे जैसे थे
चल हठी जैसी थी
दांत तो चलो गनीमत रही फूल जैसे थे
नही तो कहीं जंगल औरकहीं जंगल के जावर
नायिका यानि स्त्री क्या थी
पूरा चिड़िया घर थी
यह साहित्य के इतिहास का
मध्य युग था
परन्तु उत्तर आधुनिक युग से तो
फिर भी अच्छा था
इस में तो नारी पर अत्याचारों कई
लम्बी सूची है
नारी ही नारी कई दुश्मन पूरी है
वह वस्त्र हीना है ,नशेडी है विज्ञापन कई वस्तु है
वह तो चलो साहित्य का मध्य युग था
पर यहाँ तो आधुनिकता पूरी है
डॉ. वेद व्यथित
फरीदाबाद